jain bhugol

जैन भूगोल (Jain Cosmology) मे दूरी नापने के परिमाण

जिनवाणी के करणानुयोग विभाग में जैन भूगोल की जानकारी आती है ।

जैन भूगोल अतिप्राचीन होने से उसमें कथित परिमाणों (जैसे हाथ, गज, योजन, कोस) को आज के परिमाण के सम्बन्ध से समझ लेना चाहिए । इस विषय से जुड़े हुए कुछ प्रश्न प्रस्तुत है

जैन भूगोल मे दूरी नापने के सबसे छोटे से लेकर सबसे बड़े परिमाण कौनसे हैं ?

  • जैन भूगोल में सबसे छोटे अणु को परमाणु कहते हैं ।
  • ऐसे अनन्तानन्त परमाणु = १ अवसन्नासन्न
  • ८ अवसन्नासन्न = १ सन्नासन्न
  • ८ सन्नासन्न = १ त्रुटिरेणु
  • ८ त्रुटिरेणु का = त्रसरेणु
  • ८ त्रसरेणु का = रथरेणु
  • ८ रथरेणु = उत्तम भोग भूमिज के बाल का १ अग्रभाग
  • उत्तम भोग भूमिज के बाल के ८ अग्रभाग = मध्यम भोग भूमिज के बाल का १ अग्रभाग
  • मध्यम भोग भूमिज के बाल के ८ अग्रभाग = जघन्य भोग भूमिज के बाल का १ अग्रभाग
  • जघन्य भोग भूमिज के बाल के ८ अग्रभाग = कर्म भूमिज के बाल का १ अग्रभाग
  • कर्म भूमिज के बाल के ८ अग्रभाग = १ लिक्शा
  • ८ लिक्शा = १ जू
  • ८ जू = १ जौ
  • ८ जौ = १ अंगुल या उत्सेधांगुल (५०० उत्सेधांगुल = १ प्रमाणांगुल)
  • ६ उत्सेधांगुल = १ पाद
  • २ पाद = १ बालिस्त
  • २ बालिस्त = १ हाथ
  • २ हाथ = १ रिक्कु
  • २ रिक्कु = १ धनुष्य
  • २००० धनुष्य = १ कोस
  • ४ कोस = १ लघुयोजन
  • ५०० लघुयोजन = १ महायोजन
  • असंख्यात योजन = १ राजु

जैन भूगोल के परिमाणों के साथ, आज के भूगोल के परिमाणों का सम्बन्ध कैसे लगाये ?

  • १ गज = २ हाथ
  • १७६० गज या ३५२० हाथ = १ मील
  • २ मील = १ कोस
  • ४००० मील या २००० कोस = १ महायोजन

अंगुल परिमाण के भेद कौनसे है और उनसे किन किन का माप होता है?

अंगुल परिमाण के ३ भेद होते है।

  1. उत्सेधांगुल : यह बालग्र, लिक्षा, जूँ और जौ से निर्मित होता है। देव, मनुष्य, तिर्यंच, और नारकियों के शरीर की ऊंचाई का प्रमाण, चारों प्रकार के देवों के निवास स्थान व नगर आदि का माप उत्सेधांगुल से होता है।
  2. प्रमाणांगुल : ५०० उत्सेधांगुल का १ प्रमाणांगुल होता है। भरत चक्रवर्ती का एक अंगुल प्रमाणांगुल के प्रमाण वाला है। इससे द्वीप, समुद्र, कुलाचल, वेदी, नदी, कुंड, सरोवर, जगती, भरत आदि क्षेत्रों का माप होता है।
  3. आत्मांगुल : जिस जिस काल मे भरत और ऐरावत क्षेत्र मे जो मनुष्य होते है, उस उस काल मे उन्ही उन्ही मनुष्यों के अंगुल का नाम आत्मांगुल है। इससे झारी, कलश, दर्पण, भेरी, युग, शय्या, शकट, हल, मूसल, शक्ति, तोमर, बाण, नालि, अक्ष, चामर, दुंदुभि, पीठ, छत्र, मनुष्यो के निवास स्थान, नगर, उद्यान आदि का माप होत है।

व्यवहार पल्य किसे कहते है?

  • १ योजन (१२ से १३ कि॰मी॰)विस्तार के गोल गढ्ढे का घनफल १९/२४ योजन प्रमाण होता है।
  • ऐसे गढ्ढे मे मेंढो के रोम के छोटे छोटे टुकडे करके (जिसके पुनः दो टुकडे न हो सके)खचाखच भर दे।
  • इन रोमों का प्रमाण ४१३४५२६३०३०८२०३१७७७४९५१२१९२०००००००००००००००००० होता है।
  • अब इन रोमो मे से, सौ सौ वर्ष मे एक एक रोम खंड के निकालने पर जितने समय मे वह गड्डा खाली हो जाये, उतने काल को १ व्यवहार पल्य कहते है।

उद्धार पल्य किसे कहते है और उससे किसका माप होता है?

  • १ उद्धार पल्य की रोम राशि मे से प्रत्येक रोम खंड के असन्ख्यात वर्ष के जितने समय है, उतने खंड करके, तिसरे गढ्ढे को भरकर पुनः एक एक समय मे एक एक रोम खंड के निकालने पर जितने समय मे वह दुसरा पल्य खाली हो जाये, उतने काल को १ उद्धार पल्य कहते है।
  • इस उद्धार पल्य से द्वीप और समुद्र का प्रमाण / माप होता है।

अद्धा पल्य किसे कहते है और उससे किसका माप होता है?

  • १ व्यवहार पल्य की रोम राशि को, असन्ख्यात करोड वर्ष के जितने समय है, उतने खंड करके, उनसे दुसरे पल्य को भरकर पुनः एक एक समय मे एक एक रोम खंड के निकालने पर जितने समय मे वह गड्डा खाली हो जाये, उतने काल को १ अद्धा पल्य कहते है।
  • इस अद्धा पल्य से नारकि, मनुष्य, देव और तिर्यंचो कि आयु का तथा कर्मो की स्थिती का प्रमाण / माप होता है।

१ कोडाकोडी संख्या कितनी होती है?

१ करोड × १ करोड = १ कोडाकोडी

सागर का प्रमाण क्या है?

  • १० कोडाकोडी पल्य = १ सागर
  • १० कोडाकोडी व्यवहार पल्य = १ व्यवहार सागर
  • १० कोडाकोडी उद्धार पल्य = १ उद्धार सागर
  • १० कोडाकोडी अद्धा पल्य = १ अद्धा सागर