तत्त्वार्थ सूत्र सातवीं अध्याय

मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम्। ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुण लब्धये।। हिंसाऽनृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्र्रतम्।।१।।अर्थ — हिंसा अर्थात् जीवों को मारने से, अनृत—झूठ बोलने से, स्तेय—चोरी करने से, अब्रह्म—कुशील सेवन से और परिग्रह इन पाँचों पापों का विरति अर्थात् बुद्धिपूर्वक त्याग करने को व्रत कहते हैं। कोई व्यक्ति इन पापों को नहीं करता है लेकिन…

तत्त्वार्थ सूत्र छठी अध्याय

मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम्। ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुण लब्धये।। कायवाङ्मन: कर्मयोग:।।१।।अर्थ — काय, वचन और मन की क्रिया को योग कहते हैं। वास्तव में इन तीनों योगों के द्वारा आत्मा में हलन, चलन, परिस्पन्दन होता है उसका नाम योग है वह शरीर, वचन अथवा मन के निमित्त से होता है। प्रत्येक योग…

तत्त्वार्थ सूत्र चतुर्थ अध्याय

तत्त्वार्थ सूत्र चतुर्थ अध्याय धर्म: सर्व सुखाकरो हितकरो, धर्मं बुधाश्चिन्वते। धर्मेणैव समाप्यते शिवसुखं, धर्माय तस्मै नम:।। धर्मान्नास्त्यपर: सुहृद्भवभृतां, धर्मस्य मूलं दया। धर्मे चित्तमहं दधे प्रतिदिन, हे धर्म! मां पालय।। मोक्षमार्गस्य नेतारं, भेत्तारं कर्मभूभृताम्। ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां, वन्दे तद्गुणलब्धये।। देवाश्चतुर्णिकाया:।।१।।अर्थ — देवों के चार भेद हैं- भवनवासी व्यन्तर ज्योतिष्क वैमानिक। जो देवगति नामकर्म के…

उत्तम शौच धर्म की प्रश्नोत्तरी

प्रश्न.१ – शौच धर्म का क्या स्वरूप है ? उत्तर – उत्कृष्टता को प्राप्त ऐसे लोभ का अभाव करना शौच धर्म है अथवा शुद्धि-पवित्रता का भाव शौच धर्म है। प्रश्न.२ – शुद्धि के मुख्य रूप से कितने भेद हैं ? उत्तर – दो भेद हैं – बाह्यशुद्धि और अभ्यन्तरशुद्धि । प्रश्न.३ – बाह्य शुद्धि से क्या तात्पर्य है ? उत्तर – जल…

उत्तम आर्जव धर्म की प्रश्नोत्तरी

प्रश्न.१ – आर्जव शब्द की क्या परिभाषा है ? उत्तर – मन-वचन- काय की सरलता का नाम आर्जव है अथवा मायाचारी का नहीं होना आर्जव है। प्रश्न.२ – मायाचारी करने से कौन सी गति मिलती है ? उत्तर – तिर्यंच गति। प्रश्न.३ – मायाचारी करने में कौन प्रसिद्ध हुए हैं ? उत्तर – मृदुमति नाम के मुनिराज । प्रश्न.४ – मृदुमति मुनि ने क्या…

आर्जव धर्म

आर्जव धर्म पर मोनो ऐक्टिंग

सूर्पणखा नाम की एक स्त्री रोती हुई मंच पर प्रवेश करती है और सामने राम-लक्ष्मण को देखकर उनके रूप पर मोहित होकर कहती है — ओहो ! ये तो कोई देवपुरुष अथवा कामदेव दिख रहे हैं। इन्हें देखकर मैं तो धन्य हो गई। अब तो अपने ऊपर इन्हें मोहित करने हेतु…

दशलक्षण व्रत विधि एवं कथा

दशलाक्षणिकव्रते भाद्रपदमासे शुक्ले श्रीपंचमीदिने प्रोषध: कार्य:, सर्वगृहारम्भं परित्यज्य जिनालये गत्वा पूजार्चनादिकञ्च कार्यम्। चतुर्विंशतिकां प्रतिमां समारोप्य जिनास्पदे दशलाक्षणिकं यन्त्रं तदग्रे ध्रियते, ततश्च स्नपनं कुर्यात्, भव्य: मोक्षाभिलाषी अष्टधापूजनद्रव्यै: जिनं पूजयेत्। पंचमीदिनमारभ्य चतुर्दशीपर्यन्तं व्रतं कार्यम्, ब्रह्मचर्यविधिना स्थातव्यम्। इदं व्रतं दशवर्षपर्यन्तं करणीयम्, ततश्चोद्यापनं कुर्यात्। अथवा दशोपवासा: कार्या:। अथवा पंचमीचतुर्दश्योरुपवासद्वयं शेषमेकाशनमिति केषाञ्चिन्मतम्, तत्तु शक्तिहीनतयाङ्गीकृतं न…