गुरु के सानिध्य का फल

उत्तरपुराण में एक कथानक आया है- एक ब्राह्मण अपनी गरीबी से तंग आकर आत्महत्या करने के भाव से एक पर्वत की चोटी पर चढ़ गया। वहाँ खड़े होकर वह बार-बार नीचे देखता, डर के मारे कूद नहीं पाता। मरना कोई हँसी खेल तो है नहीं, जो आत्महत्या करने की सोचते…

भगवान के दर्शन से अनेक उपवासों का फल मिलता है

ॐ नम: सिद्धेभ्य: ॐ नम: सिद्धेभ्य: ॐ नम: सिद्धेभ्य:। आप लोग मंदिर में प्रवेश करते ही ॐ जय-जय-जय, नि:सही-नि:सही-नि:सही नमोऽस्तु-नमोऽस्तु-नमोऽस्तु बोलते हैं। इसमें ॐ जय और नमोऽस्तु का अर्थ तो लगभग सभी को पता होता है किन्तु ‘नि:सही’ का अर्थ प्राय: लोगों को ज्ञात नहीं होता। नि:सही का वास्तविक अर्थ…

सीता पृथ्वी में नहीं समाई थी

प्रश्न – क्या सती सीता पृथ्वी में समा गई थीं ? उत्तर – जैन रामायण-पद्मपुराण, पउमचरिउ आदि ग्रंथों में लिखा है कि महाराजा दशरथ की माता का नाम ‘पृथ्वीमती’ था। वे दीक्षा लेकर आर्यिका-जैन साध्वी बनी थीं। सीता महासती अग्निपरीक्षा के बाद केशलोंच करके आर्यिका माता श्री पृथिवीमती साध्वी के पास जाकर…

जैन कर्म सिद्धान्त-एक वैज्ञानिक दृष्टि

कर्म सिद्धान्त जैनदर्शन की आधारशिला है। लेखक ने कर्म की आधुनिक विज्ञान के कार्य से तुलना कर उसे वैज्ञानिक दृष्टि से समझाया है। इस लेख से कर्म बन्ध एवं निर्जरा की प्रक्रिया को सरलता से समझा जा सकता है। जो कुछ हम काम करते हैं, उसे हम सामान्य भाषा में कर्म कहते…