प्र.१. पुदगल द्रव्य के कितने प्रदेश होते हैं ?
उत्तर— ‘‘संख्येयाऽसंख्येयाश्च पुदगलानाम्’’।पुद्गलों के संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेश होते हैं।
प्र.२. अनंत संख्या किस ज्ञान का विषय है ?
उत्तर —अनंत संख्या केवल ज्ञान का विषय है।
प्र.३. परमाणु कितने प्रदेशी हैं ?
उत्तर — ‘‘नाणो:’’ परमाणु के प्रदेश नहीं होते।
प्र.४. संसार में सबसे बड़ा और सबसे छोटा क्या है ?
उत्तर — संसार में परमाणु से छोटा कोई नहीं तथा आकाश से बड़ा कोई नहीं है।
प्र.५. धर्मादि द्रव्यों का अवगाहन कहां है ?
उत्तर —‘‘लोकाकाशेऽवगाह:’’ धर्मादि द्रव्यों का अवगाह लोकाकाश में है।
प्र.६. धर्म और अधर्म द्रव्य लोक में कहां हैं ?
उत्तर — ‘‘धर्माधर्मयो: कृत्सने।’’ धर्म और अधर्म द्रव्य का अवगाह समग्र लोकाकाश में है।
प्र.७. लोकाकाश में पुद्गल द्रव्य कहां हैं ?
उत्तर — ‘‘एक प्रदेशादिषु भाज्या पुद्गलानाम्’’ पुद्गलों का अवगाह लोकाकाश के एक प्रदेश आदि में विकल्प से होता है।
प्र.८. जीवों का अवगाह कितने क्षेत्र में हैं ?
उत्तर —‘‘असंख्येयभागादिषु जीवानाम्’’जीवों का अवगाह लोकाकाश के असंख्यातवें भाग आदि में है।
प्र.९. बारद जीवों का शरीर कैसा होता है ?
उत्तर — बादर जीवों का शरीर प्रतिघात साहित होता है।
प्र.१०. जीव के प्रदेशों का संकोच और विस्तार किस तरह होता है ?
उत्तर—‘‘प्रदेशसंहार विसप्पभ्यिां प्रदीपवत्’’ प्रदीप के प्रकाश जीव के प्रदेशों का संकोच और विस्तार होता है।
प्र.११.संसार और विसर्प का अर्थ बताओं ?
उत्तर — संहरण, संकोच, और एकार्थवाची हैं। संहार का अर्थ है- संकुचित होना।
प्र.१२. धर्म–अधर्म द्रव्यों का उपकार क्या हैं ?
उत्तर —‘‘गतिस्थित्युपग्रहौ धर्माधर्मयोरूपकार:’’ गति और स्थिति में निमित्त होना यह क्रम से धर्म और अधर्म द्रव्य का उपकार है।
प्र.१३. उपग्रह का अर्थ क्या है ?
उत्तर— उपग्रह का अर्थ उपकार है ।
प्र.१४. आकाश द्रव्य का उपकार क्या है ?
उत्तर—‘‘आकाशस्यावगाह’’ समस्त द्रव्यों को अवकाश देना आकाश का उपकार है।
प्र.१५. आकाश किसे कहते हैं ?
उत्तर— जो चारों ओर से दैदीप्यमान है, व्याप्त है वह आकाश कहलाता है।
प्र.१६. अवगाहन किसे कहते हैं ?
उत्तर— अवगाहन करने वाले जीव और पुद्गलों को अवगाह देने को अवगाहन कहते हैं।
प्र.१७. पुद्गलों का उपकार क्या है ?
उत्तर— ‘‘शरीखाङ् मन: प्राणापाना: पुद्गलनाम्’’ शरीर, वचन, मन और प्राणापान यह पुद्गलों का उपकार है।
प्र.१८. शरीर किसे कहते हैं ?
उत्तर— जो जीर्ण—शाीर्ण होते हैं वे शरीर हैं।
प्र.१९. वचन और मन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर— जो बोला जाता है वह वचन है, जो मनन करता है वह मन कहलाता है।
प्र.२०. प्राण किसे कहते हैं ?
उत्तर— जिससे जीव प्राण वाला होता है । जीता है वह प्राण कहलाता है।
प्र.२१. अपान किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिससे जीव हर्ष, विषाद व विक्रति से जीता है, वह अपान है।
प्र.२२. प्राणापान किसे कहते हैं ?
उत्तर—प्राण और अपान को प्राणापान कहते हैं।
प्र.२३.पुद्गल क्या है ?
उत्तर—जिनका पूरण और गलन होता है वह पुद्गल है।
प्र.२४. मन और वचन के कितने भेद हैं ?
उत्तर—द्रव्य और भाव के भेद से मन और वचन दो प्रकार के होते है।
प्र.२५. आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि किससे होती है ?
उत्तर—प्राण— आपान से आत्मा के अस्त्तित्व की सिद्धि होती है।
प्र.२६. पुद्गल के अन्य उपकार क्या हैं ?
उत्तर—‘‘सुख दु:ख जीवितमरणोपग्रहाश्च’’ सुख, दु:ख जीवन और मरण भी पुद्गल के उपकार है ।
प्र.२७. सुख से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — सातावेदनीय के उदय से जो प्रीति रूप परिणाम होते हैं वे सुख कहलाते हैं।
प्र.२८. दु:ख किसे कहते हैं ?
उत्तर— असातावेदनीय के उदय से जो परिताप रूप परिणाम होते हैं वे दु:ख कहे जाते हैं।
प्र.२९. जीवन अर्थात् क्या ?
उत्तर— आयुकर्म के उदय से भवस्थिति को धारण करने वाले जीव को प्राण—अपान क्रिया विशेष का विच्छेद नहीं होना जीवन है।
प्र.३०. मरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर— प्राण — अपान क्रिया विशेष का विच्छेद होना मरण है।
प्र.३१. सूत्र में आये उपग्रह शब्द का क्या आशय है ?
उत्तर— उपग्रह से आशय उपकार से है।
प्र.३२. जीव का उपकार क्या है ?
उत्तर— ‘‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्।’’ परस्पर एक दूसरे पर उपकार करना जीवों का उपकार से हैं।
प्र.३३. काल द्रव्य का उपकार क्या है ?
उत्तर— ‘‘वर्तनापरिणामकियापरत्वापरत्वे च कालस्य।’’ वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व ये काल द्रव्य के उपकार हैं।
प्र.३४. वर्तना का शाब्दिक अर्थ बताईये।
उत्तर— वर्तना का अर्थ है परिवर्तन।
प्र.३५. परिणाम किसे कहते है ?
उत्तर परिणाम का अर्थ फल से है जिसका संबंध द्रव्य की पर्याय से है।
प्र.३६. परत्व — अपरत्व से क्या आशय है ?
उत्तर— छोटे— बड़े के व्यवहार को परत्व—अपरत्व कहते है।
प्र.३७. ‘काल’ के कितने भेद हैं ?
उत्तर— काल दो प्रकार का है (१) परमार्थकाल (२) व्यवहारकाल ।
प्र.३८. परमार्थकाल क्या है ?
उत्तर— जिसका लक्षण वर्तना है वह परमार्थकाल है ।
प्र.३९. जिसका लक्षण वर्तना है वह परमार्थकाल है।
उत्तर— परिणाम, क्रिया, परत्व, अपरत्व आदि लक्षण वाला काल व्यवहार काल है।
प्र.४०. व्यवहार काल के कितने भेद हैं ?
उत्तर— व्यवहारकाल के ३ भेद हैं— (१) भूतकाल (२) वर्तमान काल (३) भविष्यकाल।
प्र.४१. पुद्गल का लक्षण बताओं ?
उत्तर— ‘‘स्पर्शरसगंधवर्णवन्त: पुद्गला:।’’ जो स्पर्श, रस गंध, और वर्ण वाले होते हैं वह पुद्गल हैं।
प्र.४२. स्पर्श के लक्षण व भेद बताईये।
उत्तर— जो छूकर ज्ञात किया जाये वह स्पर्श है जिसके ८ भेद हैं— हल्का—भारी, रूखा—चकना, ठंडा—गर्म, कठोर—नर्म।
प्र.४३. रस क्या है ? उसके भेद भी बताईये।
उत्तर— खट्टा, मीठा, चटपटा, कषायला और कड़वा ।
प्र.४४. गंध क्या है ? गंध के भेद बताईये।
उत्तर— जो सूंधा जाता है वह गंध है। उसके २ भेद हैं — (१) सुगंध (२) दुर्गंध।
प्र.४५. वर्ण क्या है ? वर्ण के भेद बताईये।
उत्तर— वर्ण का अभिप्राय है पदार्थ के रंग से जो ५ प्रकार का है— काला, नीला, पीला, लाल, और सफेद।
प्र.४६. पुद्गल की कितनी पर्यायें हैं ?
उत्तर— ‘‘शब्दबंधसौक्ष्यस्थौल्य संस्थान भेद तमश्छाया तपोद्योतवन्तश्च।’’ शब्द, बंध, स्थूल, सूक्ष्म, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप और उद्योत ये पुद्गल की दस पर्यायें हैं ?
प्र.४७. पुद्गल के भेद बताईये ।
उत्तर— ‘‘अणव: स्वंधाश्च।’’ पुद्गल के २ भेद है — (१) परमाणु (२) स्वंध ।
प्र.४८. अणु किसे कहते हैं ?
उत्तर— पुद्गल का वह सबसे छोटा रुप जिसका कोई विभाग ना हो सके।
प्र.४९. स्वंध किसे कहते हैं ?
उत्तर— दो या दो से अधिक परमाणुओं के बंध को स्वंâध कहते हैं।
प्र.५०. स्वंध की उत्पत्ति कैसे होती है ?
उत्तर— ‘‘भेदसङ्घातेभ्य उत्पद्यन्ते।’’ भेद से , संघात से तथा भेद और संघात दोनों से स्वंâध की उत्पत्ति होती है।
प्र.५१. उत्पाद से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर— चेतन और अचेतन दृव्यों में अंतरंग और बहिरंग के निमित्त से जो प्रतिसमय नवीन अवस्था की प्राप्ति होती है उसे उत्पाद कहते हैं।
प्र.५२. उत्पाद को उदाहरण देकर समझाइये ?
उत्तर— मट्टी से घर का निर्माण होना इसमें ‘घर’ उत्पाद है।
प्र.५३. व्यय से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर— पूर्व अवस्था या पर्याय के विघटन या विनाश को व्यय कहते है। जैसे — घट की उत्पत्ति होने पर मिट्टी के पिण्डरूप आकार का त्याग होना।
प्र.५४. ध्रौवय का लक्षण बतलाइये ?
उत्तर— पर्याय में परीवर्तन होने पर भी वस्तु के अनादिकालीन स्वभाव अर्थात द्रव्य का ध्रुव/स्थिर रहना ध्रौव्य है। जैसे मिट्टी की ध्रौव्यता को वयक्त करता है।
प्र.५५. नित्य का लक्षण क्या है ?
उत्तर— ‘तदभावाव्ययं नित्यम’ अपने सवभाव से अलग ना होना नित्य है।
प्र.५६. द्रव्य या पदार्थ नित्य है या अनित्य ?
उत्तर— द्रव्य या पदार्थ सामान्य अपेक्षा से नित्य है और पर्याय अपेक्षा से अनित्य है।
प्र.५७. एक ही द्रव्य नित्य भी हो अनित्य भी कैसे संभव है ?
उत्तर— ‘अर्पितानर्पितसिद्ध’ मुख्यता और गौणता की अपेक्षा एक ही वस्तु में दो विरोधी धर्मों की सिद्धि होती है।
प्र.५८. अर्पित किसे कहते हैं ?
उत्तर— वक्ता जिस धर्म को कहने की इच्छा करता है उसे अर्पित कहते है ।
प्र.५९. अनर्पित किसे कहते है ?
उत्तर— वक्ता कथन करते समय जिस धर्म को कहना नहीं चाहता वह अनर्पित है।
प्र.६०. एक ही समय में वक्ता के कथन में अर्पित अनर्पितता कैसे हो सकती है ?
उत्तर— जस समय वक्ता द्वारा किसी पदार्थ को द्रवय की अपेक्षा नित्य कहा जा रहा हो उसी समय वह पदार्थ पर्याय की अपेक्षा अनित्य भी है।
प्र.६१. परमाणुओं में बंध का कारण क्या है ?
उत्तर— ‘स्निग्धरुक्षत्वादबंध:’ स्निग्ध और रुक्षत्व से बंध होता है ।
प्र.६२. स्निग्ध से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर— बाह्य और आंतरिक कारण से जो स्नेह पर्याय उतपन्न होती है वह स्निग्ध है।
प्र.६३. रुध किसे कहते है ?
उत्तर— रुखेपन के कारण पुद्गल रुा कहलाता है।
प्र.६४. बंध किसे कहते हैं ?
उत्तर— अनेक पदार्थों में एकपने का ज्ञान कराने वाले संबंध विशेष को अथवा स्निग्ध और रुक्ष गुणवाले दो परमाणुओं का परस्पर संश्लेषित होना बंध है।
प्र.६५. किन परमाणुओं का बंध नहीं होता है ?
उत्तर— ‘न जघन्यगुणानाम’ जघन्य गुण वाले पुद्गलों का बंध नहीं होता।
प्र.६६. क्या एक से गुण वालों का बंध होता है ?
उत्तर— ‘गुणसाम्ये सदृशानाम’ गुणों की समानता होने पर सदृश गुणवाले को बंध नहीं होता है।
प्र.६७. किन—किन पुद्गलों का बंध होता है ?
उत्तर— ‘द्व्यधिकादिगुणानां तु’ दो अधिक आदि बंध होता है।
प्र.६८. बंध में क्या होता है ?
उत्तर— ‘बंधऽधिकौ पारिणामिकौ च’ बंध में अधिक गुण वाले परमाणु, क्रम गुण वाले परमाणुओं को अपने में परिणित कर लेते हैं।
प्र.६९. द्रव्य का (प्रकारांतर से ) लक्षण क्या है ?
उत्तर— ‘गुणपर्यायवद द्रव्यम’ गुण और पर्याय वाला दृव्य है।
प्र.७०. क्या काल द्रव्य है ?
उत्तर— कालश्च हां काल भी एक दृव्य है।
प्र.७१. व्यवहार काल का प्रमाण क्या है ?
उत्तर— ‘सोऽनन्तसमय:’ वह काल अनन्त समय वाला है।
प्र.७२. गुण किसे कहते है ?
उत्तर— ‘द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणा:’ जो निरंतर द्रव्य में रहते हैं वे गुणा है।
प्र.७३. गुणो के कितने भेद है ?
उत्तर— गुणों के २ भेद है — १. सामान्य , २. विशेष
प्र.७४. परिणाम किसे कहते है ?
उत्तर— ‘तदभाव: परिणाम: ’ दृश्यों का स्वभाव तद्भाव है—ऊसे ही परिणाम कहते है जो सादि अनादि के भेद से दो प्रकार के है।
द्व्यधिकादिगुणानां तु
सही सूत्र इस प्रकार होगा कृपया सुधार करें