भवनवासी एवं व्यंतरदेवों के निवासस्थान (तत्वार्थवार्तिक से)

इस रत्नप्रभा पृथ्वी के पंकबहुल भाग में असुरकुमार देवों के चौंसठ लाख भवन हैं। इस जम्बूद्वीप से तिरछे दक्षिण दिशा में असंख्यात द्वीप समुद्रों के बाद पंकबहुल भाग में चमर नामक असुरेन्द्र के चौंतीस लाख भवन हैं। इस असुरेन्द्र के चौंसठ हजार सामानिक, तेतीस त्रायस्त्रिंश, तीन सभा, सात प्रकार की…

जैन आयुर्वेद ग्रंथ : कल्याणकारकम्

आचार्य उग्रादित्य कृत कल्याणकारकम् KALYĀṆAKĀRAKAṀ तीर्थंकरों द्वारा उपदेशित द्वादशांग रूप शास्त्र के उत्तर भेद प्राणावाय पूर्व ही आयुर्वेद शास्त्रों का मूल स्रोत ग्रंथ है। इस ग्रंथ में विस्तार से अष्टांगायुर्वेद का वर्णन है। ८—९ वीं शताब्दी में जैनाचार्य उग्रादित्य ने कल्याणकारकम् नामक महान् आयुर्वेद ग्रंथ की रचना की थी। जो…