षट्काल परिवर्तन

संजय – गुरु जी! आपने कहा था कि विदेह में षट्काल परिवर्तन नहीं होता, सो वह क्या है? गुरुजी – सुनो! काल के दो भेद हैं-उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी। जिसमें जीवों की आयु, ऊँचाई, भोगोपभोग संपदा और सुख आदि बढ़ते जावें, वह उत्सर्पिणी है और जिसमें घटते जावें, वह अवसर्पिणी है। इन दोनों…

रत्नत्रय धर्म

सम्यग्दर्शन अन्तरंग और बहिरंग कारणों के मिलने पर आप्त (देव), शास्त्र और पदार्थों का तीन मूढ़ता रहित, आठ अंग सहित जो श्रद्धान होता है, उसे सम्यग्दर्शन कहते हैं। यह सम्यग्दर्शन प्रशम, संवेग आदि गुण वाला होता है। सर्वप्रथम यहां पर आप्त, आगम और पदार्थों का स्वरूप समझ लेना आवश्यक है।…