दशधर्म प्रश्नोत्तरी

01.उत्तमक्षमा धर्म की प्रश्नोत्तरी


प्रश्न -१- क्षमा किसे कहते हैं ?

उत्तर – किसी भी विपरीत परिस्थिति में अपने परिणामों में क्रोध उत्पन्न न होना क्षमा है।

प्रश्न -२- क्षमा को किसकी उपमा दी है ?

उत्तर- क्षमा को शीतल जल की उपमा दी गई है ।

प्रश्न -३- क्षमा को शीतल जल की उपमा क्यों दी गई है ?

उत्तर – क्रोधरूपी अग्नि से सहित मनुष्य को क्षमाशील व्यक्ति क्षण भर में शांत कर देता है इसलिए क्षमा को शीतल जल की उपमा दी गई है।

प्रश्न -४- क्षमा धारण करने में सबसे अधिक कौन प्रसिद्ध हुए हैं ?

उत्तर – तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ।

प्रश्न -५- क्षमाशीलता के कोई तीन उदाहरण बताइए ?

उत्तर –कमठ और मरूभूति दो सगे भाई थे । किसी समय कमठ ने मरूभूति की पत्नी से व्यभिचार किया तब राजा ने उसे दण्डित कर देश से निकाल दिया । इस क्रोध के वशीभूत होकर उसने दश भव तक अकारण ही मरूभूति पर घोर उपसर्ग किया परन्तु मरूभूति क्षमाभाव से सब कुछ सहन करके भगवान पार्श्वनाथ बन गए । श्री रामचन्द्र वनवास के समय एक बार अरुण ग्राम में कपिल ब्राह्मण के घर पहुंचे। उस समय प्यास से व्याकुल सीता को कपिल की पत्नी ने पानी पिला दिया, तभी वहाँ कपिल ब्राह्मण आकर गाली बकने लगे । लक्ष्मण ने उसे उठाकर गुस्से में आकर जमीन में पटकना चाहा परन्तु रामचन्द्र ने उसे क्षमा प्रदान कर दी । पुनः कालान्तर में उसे धन-सम्मान आदि देकर मालामाल कर दिया । ध्यानलीन श्री गजकुमार मुनिराज के सिर पर अंगीठी जला देने पर भी वे विचलित नहीं हुए और क्षमाभाव से इस उपसर्ग को सहन करते-करते परमात्म पद को प्राप्त हो गए ।


02.उत्तम मार्दव धर्म की प्रश्नोत्तरी


प्रश्न.१ – मार्दव का क्या अर्थ है ?

उत्तर – मानरूपी शत्रु का मर्दन करना अर्थात् नाश करना एवं परिणामों में मृदुता- कोमलता का भाव होना मार्दव कहलाता है।

प्रश्न.२ – यह मार्दव गुण कितने प्रकार के मद से रहित होता है?

उत्तर – यह मार्दव गुण आठ प्रकार के मद से रहित होता है । उन आठ मदों के नाम इस प्रकार हैं – जाति , कुल, बल, ऐश्वर्य, रूप, तप, विद्या और धन।

प्रश्न.३ – मार्दव धर्म की और क्या विशेषता है ?

उत्तर – यह धर्म चार प्रकार की विनय से संयुक्त होता है- ज्ञानविनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय और उपचार विनय।

प्रश्न.४ – किस रानी ने रूप के मद में उन्मत्त होकर क्या अकार्य किया ? इसका उसे क्या कुफल मिला ?

उत्तर – सिंधुमती रानी ने रूप के मद में उन्मत्त होकर एक दिगम्बर मुनिराज को कड़वी तूमड़ी का आहार दे दिया जिसके फलस्वरूप उसे इस लोक में राजा द्वारा अनेकों दण्ड प्राप्त हुए तथा अनेक भवों में नरक-तिर्यञ्च के दुःख भोगने पड़े।

प्रश्न.५ – ‘‘भूप कीड़ों में गया’’ दशलक्षण पूजा की इस पंक्ति का क्या तात्पर्य है ?

उत्तर – मिथिलानगर के राजा को आर्तध्यान के निमित्त से किसी समय तिर्यंचायु का बंध हो गया। निमित्तज्ञानी मुनिराज से पूछने पर उन्होंने बताया कि मृत्यु के पश्चात् तुम अपने विष्ठागृह में पंचरंगी कीड़ा हो जावोगे।यह सुनकर राजा को बड़ा दु:ख हुआ, उसने अपने पुत्र से कह दिया कि तुम मुझे कीड़ा बनने के बाद तुरन्त मार देना। समय आने पर वह राजा कीड़ा बन गया। परन्तु जबभी पुत्र उस कीड़े को मारने जाता, वह अपनी जान बचाकर विष्ठा के अन्दर ही घुस जाता । पुत्र द्वारा मुनिराज से इसका कारण पूछे जाने पर मुनि ने कहा कि हे भव्यात्मन् ! यह जीव जहां चला जाता है वहीं रम जाता है और वहां से निकलना नहीं चाहता है । केवल नरकगति ऐसी है जहां से प्रतिक्षण निकलना चाहता है किन्तु आयु पूरी किए बिना वहाँ से निकल नहीं सकता है।


03.उत्तम आर्जव धर्म की प्रश्नोत्तरी


प्रश्न.१ – आर्जव शब्द की क्या परिभाषा है ?

उत्तर – मन-वचन- काय की सरलता का नाम आर्जव है अथवा मायाचारी का नहीं होना आर्जव है।

प्रश्न.२ – मायाचारी करने से कौन सी गति मिलती है ?

उत्तर – तिर्यंच गति।

प्रश्न.३ – मायाचारी करने में कौन प्रसिद्ध हुए हैं ?

उत्तर – मृदुमति नाम के मुनिराज ।

प्रश्न.४ – मृदुमति मुनि ने क्या मायाचारी की थी ? इसका उन्हें क्या फल मिला ?

उत्तर – गुणनिधि नामक चारणऋद्धिधारी मुनिराज के दुर्गगिरी पर्वत पर चार माह तक योगलीन रहने पर सुर-असुरों ने खूब भक्ति की पुनः उनके चले जाने के बाद मृदुमति मुनि गांव में आहारार्थ गए। तब लोगों ने उन्हें गुणनिधि मुनिराज जानकर उनकी खूब भक्ति की परन्तु मृदुमति मुनि ने उन्हें मायाचारी के कारण सच्चाई नहीं बताई जिसके परिणामस्वरूप कालान्तर में वे त्रिलोकमण्डन नाम के हाथी हो गए।

प्रश्न.५ – दुर्योधन ने पांडवों के साथ क्या मायाचारी की थी ?

उत्तर – दुर्योधन ने पाँडवों को मायाचारी से लाख के महल में भेज दिया पुनः एक लोभी ब्राह्मण को धन देकर उस महल में आग लगवा दी जिसके कारण दुर्योधन आज भी नरक में दुःख भोग रहे हैं।


04.उत्तम सत्य धर्म की प्रश्नोत्तरी


प्रश्न.१ – सत्य धर्म का क्या स्वरूप है ?

उत्तर – सत् अर्थात् प्रशस्तजनों में अच्छे वचन बोलना सत्य है अथवा झूठ नहीं बोलना सत्यधर्म है।

प्रश्न.२ – झूठ बोलने में कौन प्रसिद्ध हुआ ? उसे इसका क्या फल मिला।

उत्तर – राजा वसु । झूठ बोलने के कारण उसे सातवें नरक में जाना पड़ा।

प्रश्न.३ – सत्य बोलने से क्या-क्या लाभ हैं ?

उत्तर – सत्य बोलने वाले सभी के विश्वासपात्र बन जाते हैं। सत्य बोलने वालों को वचनसिद्धि हो जाती है । सत्य बोलने वाले क्रमशः दिव्यध्वनि के स्वामी अर्थात् तीर्थंकर भगवान बन जाते हैं।

प्रश्न.४ – भारतीय मुद्रा पर कौन सी सूक्ति लिखी होती है ?

उत्तर – ‘‘सत्यमेव जयते’’ अर्थात् सत्य की ही सदा विजय होती है।

प्रश्न.५ – सत्य से सम्बन्धित कोई तीन सूक्तियाँ बताइए ?

उत्तर – १. साँच को आँच नहीं ।
२. साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप । जाके हिरदय साँच है, ताके हिरदय आप ।।
३. सत्यम् शिवम् सुन्दरम् ।


05. उत्तम शौच धर्म की प्रश्नोत्तरी


प्रश्न.१ – शौच धर्म का क्या स्वरूप है ?

उत्तर – उत्कृष्टता को प्राप्त ऐसे लोभ का अभाव करना शौच धर्म है अथवा शुद्धि-पवित्रता का भाव शौच धर्म है।

प्रश्न.२ – शुद्धि के मुख्य रूप से कितने भेद हैं ?

उत्तर – दो भेद हैं – बाह्यशुद्धि और अभ्यन्तरशुद्धि ।

प्रश्न.३ – बाह्य शुद्धि से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर – जल आदि से स्नाान करके शरीर आदि को शुद्ध करना बाह्यशुद्धि है।

प्रश्न.४ – अभ्यन्तर शुद्धि किसे कहते हैं ?

उत्तर – लोभ कषाय आदि का त्याग करने से अभ्यन्तर शुद्धि होती है।

प्रश्न.५ – संसार में किन-किनको सर्वाधिक पवित्र माना है ?

उत्तर – भूमि से निकला हुआ जल, पतिव्रता स्त्री, धर्म में तत्पर राजा और ब्रह्मचारीगण सदा शुद्ध माने जाते हैं।


06.उत्तम संयम धर्म की प्रश्नोत्तरी


प्रश्न.१ -संयम किसे कहते हैं ?

उत्तर – समिति में प्रवृत्त हुए मुनि, जो प्राणी हिंसा और इन्द्रिय विषयों का परिहार करते हैं, सो संयम है।

प्रश्न.२ – संयम को किसकी उपमा दी गई है ?

उत्तर – दुर्लभ चिन्तामणि रत्न की । अर्थात् जिस प्रकार चिन्तामणि रत्न का मिलना कठिन है उसी प्रकार मनुष्य पर्याय प्राप्त करके संयमरूपी रत्न को प्राप्त करना कठिन है।

प्रश्न.३ – संयम के कितने भेद हैं ?

उत्तर – दो- प्राणी संयम और इन्द्रिय संयम।

प्रश्न.४ – प्राणी संयम किसे कहते हैं ?

उत्तर – पाँच स्थावर और एक त्रस, ऐसे षट्काय जीवों की रक्षा करना प्राणी संयम है।

प्रश्न.५ – इन्द्रिय संयम किसे कहते हैं ?

उत्तर – पाँच इन्द्रिय तथा एक मन पर विजय प्राप्त करना इन्द्रिय संयम है।


07.उत्तम तप धर्म की प्रश्नोत्तरी


प्रश्न.१ – तप का क्या स्वरूप है ?

उत्तर – ‘‘कर्मक्षयार्थं तप्यत इति तप’अर्थात् कर्मक्षय के लिए जो तपा जाता है, वह तप है।

प्रश्न.२ – तप कितने प्रकार का होता है ?

उत्तर – बारह प्रकार का- छह बाह्य तप, छह अंतरंग तप ।

प्रश्न.३ – छह बाह्य तप कौन – कौन से हैं ?

उत्तर – अनशन, अवमौदर्य, वृत्तपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशयनासन और कायक्लेश।

प्रश्न.४ – छह अन्तरंग तप के नाम बताओ ?

उत्तर – प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्ति, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान।

प्रश्न.५ – बाह्य तप की क्या महिमा है ?

उत्तर – बाह्य तप के प्रभाव से अनेक प्रकार की ऋद्धियाँ प्रगट हो जाती हैं।


08.उत्तम त्याग धर्म की प्रश्नोत्तरी


प्रश्न.१ – त्याग धर्म का क्या स्वरूप है ?

उत्तर – संयत के योग्य ज्ञान आदि को देना त्याग है अथवा रत्नत्रय का दान देना त्याग कहलाता है और तीन प्रकार के पात्रों के लिए चार प्रकार का दान देना भी त्याग है।

प्रश्न.२ – त्याग के कितने भेद हैं ?

उत्तर – चार- आहारदान, औषधिदान, शास्त्रदान और अभयदान।

प्रश्न.३ – चारों दानों में प्रसिद्ध व्यक्तियों के नाम बताइए ?

उत्तर – आहारदान में राजा वङ्काजंघ प्रसिद्ध हुए, औषधिदान में श्रीकृष्ण, शास्त्रदान में ग्वाला और अभयदान में सूकर प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न.४ – दान किनको देना चाहिए ?

उत्तर – उत्तमपात्र- मुनि – आर्यिका आदि मध्यम पात्र- देशव्रती श्रावक और जघन्यपात्र अर्थात् अविरत सम्यग्दृष्टि श्रावक, इन तीन पात्रों में ही दान देना चाहिए।

प्रश्न.५ – इनको दान देने से क्या फल मिलता है ?

उत्तर – उत्तम पात्र को दिया गया दान उत्तम भोग भूमि को प्राप्त कराता है, मध्यम पात्र में दान देने से मध्यम भोगभूमि प्राप्त होती है तथा जघन्य पात्र को दिया जाने वाला दान जघन्य भोगभूमि की प्राप्ति कराता है।


09.उत्तम आकिंचन धर्म की प्रश्नोत्तरी


प्रश्न.१ – आकिंचन्य की क्या परिभाषा है ?

उत्तर – ‘‘न मे किञ्चन अकिञ्चनः अर्थात् मेरा कुछ भी नहीं है इस प्रकार की भावना करना आकिंचन्य धर्म है।

प्रश्न.२ – अकिंचन किनको कहते हैं ?

उत्तर – सम्पूर्ण आरम्भ और परिग्रह से रहित महासाधु ही अकिंचन कहलाते हैं।

प्रश्न.३ – परिग्रह को भार क्यों कहा गया है ?

उत्तर – जिस प्रकार कोई भारी वस्तु नदी में डूब जाती है और हल्की वस्तु पानी के ऊपर तैरती है उसी प्रकार अधिक परिग्रह से सहित मनुष्य संसार समुद्र में डूब जाता है जबकि दिगम्बर महासाधु सब कुछ त्याग करके संसार समुद्र को पार कर लेते हैं।

प्रश्न.४ – आकिंचन्य धर्म की क्या महिमा है ?

उत्तर – इस धर्म के प्रभाव से मनुष्य अमूल्य रत्नत्रय निधि को प्राप्त करके तीन लोक के नाथ बन जाते हैं।

प्रश्न.५ – अकिंचन महासाधु किस प्रकार चिंतवन करते हैं ?

उत्तर – वे इस प्रकार चिन्तन करते हैं कि आत्मा शरीर से भिन्न है, तिलतुषमात्र भी परिग्रह मेरा नहीं है, मेरी आत्मा ज्ञानमयी है, अतीन्द्रिय है, सर्वोत्कृष्ट है, परमात्मस्वरूप है, आदि- आदि ……………..।


10-उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की प्रश्नोत्तरी


प्रश्न.१ – ब्रह्मचर्य धर्म की परिभाषा क्या है ?

उत्तर – आत्मा ही ब्रह्म है, उस ब्रह्मस्वरूप आत्मा में चर्या करना सो ब्रह्मचर्य है ।

प्रश्न.२ – ब्रह्मचर्य व्रत में कौन प्रसिद्ध हुए हैं ?

उत्तर –सुदर्शन सेठ

प्रश्न.३ – ब्रह्मचर्य व्रत की क्या महिमा है ?

उत्तर – ब्रह्मचर्य व्रत के प्रभाव से ही विद्या और मंत्र सिद्ध होते हैं, किसी भी विधि – विधान व अनुष्ठान में ब्रह्मचर्य के बिना सिद्धि नहीं मिल सकती ।

प्रश्न.४ – ब्रह्मचर्य व्रत के बिना अन्य सभी व्रत निष्फल क्यों माने जाते हैं ?

उत्तर – जिस प्रकार जब तक कोई संख्या न लिखी जाए केवल शून्य ही लिखे जाएँ तो उनकी कोई गणना नहीं होती । जब कोई अंक लिखकर शून्य रखते हैं तो संख्या बन जाती है जैसे १०,१००,१००० आदि, उसी प्रकार ब्रह्मचर्य व्रत के बिना अन्य सभी व्रत शून्य के समान सारहीन समझना चाहिए ।

प्रश्न.५ – सती सीता ने अग्नि को सरोवर कैसे बना दिया था ?

उत्तर – शील के माहात्म्य से ।