धीरे-धीरे महावीर Bhagwan Mahaveer बड़े होने लगे। उनके लिए सदैव स्वर्ग से ही भोजन, वस्त्र एवं आभूषण आदि आते थे। उन्होंने कभी भी अपने घर का भोजन नहीं किया क्योंकि सभी तीर्थंकरों के लिए यही नियम है कि वे स्वर्ग का दिव्य भोजन ही करते हैं। युवावस्था को प्राप्त करने पर एक दिन महारानी त्रिशला ने उन्हें विवाह करने के लिए समझाया परन्तु युवराज महावीर ने विवाह न करके जैनेश्वरी दीक्षा लेकर मुक्तिरूपी कन्या का वरण करने का अपना संकल्प माँ को बताया, जिससे माता त्रिशला बहुत दुःखी हुर्इं किन्तु महावीर ने उन्हें समझा-बुझा कर शांत किया और देवों द्वारा लाई पालकी में बैठकर दीक्षा लेने हेतु वन में चले गये।
Vardhaman (Bhagwan Mahaveer) was growing up gradually. He had always eaten the food of Kalpvrikshas of heaven, so he did not eat the food of his house any time. He also used to wear the clothes & jewellery brought from the heaven. Vardhaman (Bhagwan Mahaveer) entered the young age from Childhood and passed thirty years. One day queen Trishala asked Him to give consent for the marriage but the Prince Mahavira expressed His keen intention to take Jaineshwari Deeksha to get free from the worldly transmigration at the place of being married with some girl. Mother Trishala became very anxious to listen to this but somehow Mahavira pacified her. Later He went to the forest to take Deeksha being seated in Palki.