श्री गौतमस्वामी विरचित पाक्षिक प्रतिक्रमण में— ‘से अभिमद जीवाजीव-उवलद्धपुण्णपाव-आसवसंवरणिज्जर-बंधमोक्खमहिकुसले।।।’’[१] जीव अजीव पुण्य पाप आस्रव संवर निर्जरा बंध मोक्ष। ये क्रम है। यही क्रम षट्खण्डागम धवला टीका पुस्तक १३ में है। ‘‘जीवाजीव- पुण्ण-पाव-आसव-संवर-णिज्जरा-बंध-मोक्खेहि। णवहिं पयत्थेहि वदिरित्तमण्णं ण किं पि अत्थि, अणुवलंभादो।।’अर्थात् जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष…
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ऋग्वेद मूलत: श्रमण ऋषभदेव प्रभावित कृति है!
ऋग्वेद मूलत: श्रमण ऋषभदेव प्रभावित कृति है! विश्व के विद्वानों, इतिहासकारों एवं पुरातात्विकों के मतानुसार इस धरती पर ईसा से लगभग ५०००—३००० वर्ष पूर्व के काल में सभ्यता अत्यन्त उन्नति पर थी। मिस्र देश के पिरामिड और ममी, स्पिक्स, चीन की ममी, ग्रीक के अवशेष, बेबीलोन, भारत के वेद, मोहनजोदड़ों—हड़प्पा…
दिगम्बर साधु
प्र. दिगम्बर साधुओ के बारे में उनकी नग्नता को लेकर कई भ्रांतियाँ है। एक तो यह कि भाई समाज में कोई तो नग्न नहीं रहता है, फिर यह शख्स नग्न क्यों रहता है ? इसे नग्न रहने का क्या अधिकार है ? जैन तो जानते हैं कि यह एक परंपरा…
गुरु के सानिध्य का फल
उत्तरपुराण में एक कथानक आया है- एक ब्राह्मण अपनी गरीबी से तंग आकर आत्महत्या करने के भाव से एक पर्वत की चोटी पर चढ़ गया। वहाँ खड़े होकर वह बार-बार नीचे देखता, डर के मारे कूद नहीं पाता। मरना कोई हँसी खेल तो है नहीं, जो आत्महत्या करने की सोचते…
भगवान के दर्शन से अनेक उपवासों का फल मिलता है
ॐ नम: सिद्धेभ्य: ॐ नम: सिद्धेभ्य: ॐ नम: सिद्धेभ्य:। आप लोग मंदिर में प्रवेश करते ही ॐ जय-जय-जय, नि:सही-नि:सही-नि:सही नमोऽस्तु-नमोऽस्तु-नमोऽस्तु बोलते हैं। इसमें ॐ जय और नमोऽस्तु का अर्थ तो लगभग सभी को पता होता है किन्तु ‘नि:सही’ का अर्थ प्राय: लोगों को ज्ञात नहीं होता। नि:सही का वास्तविक अर्थ…
सीता पृथ्वी में नहीं समाई थी
प्रश्न – क्या सती सीता पृथ्वी में समा गई थीं ? उत्तर – जैन रामायण-पद्मपुराण, पउमचरिउ आदि ग्रंथों में लिखा है कि महाराजा दशरथ की माता का नाम ‘पृथ्वीमती’ था। वे दीक्षा लेकर आर्यिका-जैन साध्वी बनी थीं। सीता महासती अग्निपरीक्षा के बाद केशलोंच करके आर्यिका माता श्री पृथिवीमती साध्वी के पास जाकर…
जैन कर्म सिद्धान्त-एक वैज्ञानिक दृष्टि
कर्म सिद्धान्त जैनदर्शन की आधारशिला है। लेखक ने कर्म की आधुनिक विज्ञान के कार्य से तुलना कर उसे वैज्ञानिक दृष्टि से समझाया है। इस लेख से कर्म बन्ध एवं निर्जरा की प्रक्रिया को सरलता से समझा जा सकता है। जो कुछ हम काम करते हैं, उसे हम सामान्य भाषा में कर्म कहते…
०५. सुमतिनाथ भगवान का परिचय
श्री सुमतिनाथ भगवान पिछले भगवान अभिनंदननाथ अगले भगवान पद्मप्रभनाथ चिन्ह चकवा पिता महाराज मेघरथ माता महारानी सुमंगला देवी वंश इक्ष्वाकु वर्ण क्षत्रिय अवगाहना 300 धनुष (बारह सौ हाथ) देहवर्ण तप्त स्वर्ण सदृश आयु 4,000,000 पूर्व वर्ष (282.24 Quintillion Years Old) वृक्ष सहेतुक वन एवं प्रियंगुवृक्ष प्रथम आहार सौमनस नगर के राजा पद्म…
कैसी है भोगभूमि.?
जहाँ तीन पल्य की आयु, तीन कोश ऊँचा शरीर, अद्भुत सुन्दर रूप, समचतुरस्र संस्थान, महाबल-पराक्रम युक्त मनुष्य होते हैं । स्त्री-पुरुषों का युगल उत्पन्न होता है । तीन दिन बीतने पर जब कभी कुछ आहार की इच्छा होती है तब बेर के बराबर आहार करके क्षुधावेदना रहित हो जाते हैं…
भक्तामर रचना की प्रस्तावना पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न १. भक्तामर स्तोत्र का दूसरा नाम बताइये ? उत्तर—आदिनाथ स्तोत्र है। प्रश्न २. राजा भोज की सभा में कौन, किसके साथ गये ? उत्तर—नगर सेठ अपने पुत्र के साथ गये। प्रश्न ३. सेठ के पुत्र ने कौन से ग्रंथ के श्लोक सुनाये ? उत्तर—नाममाला ग्रंथ के। प्रश्न ४. इस नाममाल ग्रंथ के…
जैनधर्म कर्मसिद्धान्त पर आधारित है
जैन सिद्धान्त के अनुसार समय की परिभाषा अत्यन्त सूक्ष्म बताई है। एक आवली मात्र में असंख्यात समय माने हैं। प्रत्येक जीवात्मा में प्रतिसमय कर्म के परमाणु आते रहते हैं। गोम्मटसार कर्मकांड में आचार्यश्री नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती ने कहा है- सिद्धाणंतिम भागं अभव्वसिद्धादणंत गुणमेव। समयपबद्धं बंधदि जोगवसादो दु विसरित्थं।। अर्थात् यह आत्मा…
सम्यग्दर्शन का महिमा
सम्यग्दर्शन का महिमा— सम्यग्दर्शन की महिमा बतलाते हुए समन्तभद्रस्वामी ने कहा है— ‘ज्ञान और चारित्र की अपेक्षा सम्यग्दर्शन श्रेष्ठता को प्राप्त होता है इसलिये मोक्षमार्ग में उसे कर्णधार—खेवटिया कहते हैं। जिस प्रकार बीज के अभाव में वृक्ष की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और फल की प्राप्ति नहीं होती उसी प्रकार सम्यग्दर्शन…