कल्याण मुनि का सिकन्दर पर प्रभाव

यूनानी शासक सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण ३२७ ई. पू. में किया। वह भारत आकर कुछ राज्यों में विजय प्राप्त करके वापस लौट रहा था, तब उसने तक्षशिला के पास एक उद्यान में बहुत से नग्न जैन मुनियों को तपस्यारत देखा। उसने अपने एक दूत को भेजकर मुनिराजों को बुलवाना…

बारह भावना (अनुप्रेक्षा)

बारह भावना (अनुप्रेक्षा) जो श्रावक गृहस्थाश्रम में ही रहते हुए पंच अणुव्रत आदि व्रतों को पालन करते हैं, उनके वैराग्य जागृत करने के लिए चिन्तवन करने योग्य बारह अनुपे्रक्षाएं हैं अथवा वैराग्य उत्पन्न होने के अनन्तर तीर्थंकरों ने भी इन अनुपे्रक्षाओं का चिन्तवन किया है अत: वैराग्य को जन्म देने…

Ridhiyon Ka Varnan

ऋद्धियों का वर्णन   तपश्चर्या को करने वाले मुनि अनेक प्रकार की ऋद्धियों के स्वामी हो जाते हैं। ऋद्धियों के आठ१ भेद हैं-बुद्धिऋद्धि, विक्रियाऋद्धि, क्रियाऋद्धि, तपऋद्धि, बलऋद्धि, औषधिऋद्धि, रसऋद्धि और क्षेत्रऋद्धि।बुद्धिऋद्धि के १८, विक्रिया के ११, क्रिया के २, तप के ७, बल के ३, औषधि के ८, रस के ६…

जैनधर्म प्रश्नोत्तरमाला-9

प्रश्न -पुरुषार्थ के कितने भेद हैं ?  उत्तर -४ भेद हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। प्रश्न -हिंसा के कितने भेद होते हैं ?  उत्तर -४ भेद होते हैं-संकल्पीहिंसा, आरंभी हिंसा, उद्योगी हिंसा और विरोधी हिंसा। प्रश्न -संकल्पी हिंसा किसे कहते हैं ?  उत्तर -अभिप्रायपूर्वक दोइन्द्रिय आदि जीवों को मारना ‘‘संकल्पी हिंसा’’ कहलाती है…

Shravak Ke Aath (8) Mulaguna

श्रावक के ८ मूलगुण श्रावक के ८ मूलगुण होते हैं। इनके अनेक प्रकार हैं— पुरुषार्थसिद्ध्युपाय में श्री अमृतचंदसूरि ने लिखा हैं— मद्यं मांसं क्षौद्रं पञ्चोदुम्बरफलानि यत्नेन। िंहसाव्युपरतिकामैर्मोक्तव्यानि प्रथममेव।।६१।।अन्वयार्थौ — (हिंसाव्युपरतिकामैः) हिंसा त्याग करने की कामना वाले पुरुषों को (प्रथममेव) प्रथम ही (यत्नेन) यत्नपूर्वक (मद्यं) शराब, (मांसं) मांस, (क्षौद्रं) शहद और (पंचोदुम्बरफलानि)…

48 – अड़तालीसवां मनुष्य भव

कहा है कि पानी में डूबने के बाद कोई भी व्यक्ति अधिक से अधिक 3 बार ही ऊपर आता है, उसमें बच जाये, तो ठीक, नहीं तो फिर वह पूर्णरूपेण डूब जाता है।शास्त्रों में आता है कि हर जीव (मनुष्य) निगोद से त्रस पर्याय में अधिक से अधिक दो हजार…

जैनधर्म प्रश्नोत्तरमाला-8

प्रश्न –रक्षाबंधन पर्व कहाँ से प्रारंभ हुआ है ? उत्तर -हस्तिनापुर तीर्थ से इस पर्व का शुभारंभ हुआ है । प्रश्न –यह पर्व किसकी स्मृति से चला ? उत्तर -सात सौ दिगम्बर महामुनियों के ऊपर हुए अग्नि उपसर्ग को दूर करने के उपलक्ष्य में यह पर्व प्रारंभ हुआ है । प्रश्न –वे…

आचार्य कुन्दकुन्द

आचार्य कुन्दकुन्द (Acharya Kundkund)

आचार्य कुन्दकुन्द विक्रम की प्रथम शताब्दी के आचार्यरत्न माने जाते हैं। जैन परम्परा में भगवान् महावीर और गौतम गणधर के बाद कुन्दकुन्द का नाम लेना मंगलकारक माना जाता है – मंगलं भगवान् वीरों मंगलं गौतमो गणी। मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम्।। यह श्लोक दिगम्बर परम्परा में शास्त्र स्वाध्याय से पूर्व बोला…

चौंतीस अतिशय एवं आठ प्रातिहार्य

तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में श्री यतिवृषभाचार्य ने ३४ अतिशय एवं ८ प्रातिहार्य का वर्णन किया है— लोक और अलोक को प्रकाशित करने के लिए सूर्य के समान भगवान् अरहन्त देव उन सिंहासनों के ऊपर आकाशमार्ग में चार अंगुल के अन्तराल से स्थित रहते हैं।। ८९५।। (१) स्वेदरहितता, (२) निर्मलशरीरता, (३) दूध…

20 tirthankar

विहरमान बीस तीर्थंकर और उनकी बीस विशेषतायें

1) भरत ऐरावत क्षेत्र की तरह महाविदेह क्षेत्र में एक के बाद एक ऐसे चौबीस तीर्थंकरों की व्यवस्था नहीं है। महाविदेह क्षेत्र की पुण्यवानी अनंतानंत और अद्भुत है. वहां सदाकाल बीस तीर्थंकर विचरते रहते हैं, उनके नाम भी हमेशा एक सरीखे ही रहते हैं; इसलिए उन्हें जिनका कभी भी वियोग…

दुनिया के ‘दस’ आश्चर्य

दुनिया के ‘दस’ आश्चर्य आपने विश्व के अनेक आश्चर्यों के बारे में सुना होगा, सात आश्चर्यों के बारे में तो संशय अवश्य ही सुना होगा; किन्तु वास्तव में देखा जाए तो वे सभी आश्चर्य क्षणभंगुर हैं, एक स्थूल अपेक्षा से ही ‘आश्चर्य’ कहे जा सकते हैं, अन्यथा उनमें कुछ भी…

पल्य-सागर का स्वरूप

कुलकरों की, देव-नारकियों की अवगाहना के प्रमाण में जो ‘धनुष’ शब्द आया है और आयु तथा अन्तराल में ‘पल्य’ शब्द का प्रयोग आया है, अब उनको समझने के लिए धनुष और पल्य को बनाने की प्रक्रिया को बतलाते हैं- अंगुल, धनुष, पल्य आदि की प्रक्रिया-पुद्गल के एक अविभागी टुकड़े को…