Acharya Shri Vidyasagar Maharaj

संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज : Sant Siromani Acharya Shri Vidyasagar Maharaj

संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज (Sant Siromani Acharya Shri Vidyasagar Maharaj)

22 साल की उम्र में संन्यास लेकर दुनिया को सत्य-अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले Acharya Shri Vidyasagar Maharaj की एक झलक पाने लाखों लोग मीलों पैदल दौड़ पड़ते हैं। उनके प्रवचनों में धार्मिक व्याख्यान कम और ऐसे सूत्र ज्यादा होते हैं जो किसी भी व्यक्ति के जीवन को सफल बना सकते हैं। Acharya Shri Vidyasagar Maharaj अकेले ऐसे संत है जिनके जीवत रहते हुए उन पर अब तक 55 पीएचडी हो चुकी हैं।
Acharya Shri Vidyasagar Maharaj का जीवन वृत्त..
हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, कन्नड़, मराठी आदि भाषाओं के जानकार विद्यासागरजी का बचपन भी आम बच्चों की तरह बीता। गिल्ली-डंडा, शतरंज आदि खेलना, चित्रकारी स्वीमिंग आदि का इन्हें भी बहुत शौक रहा। लेकिन जैसे-जैसे बड़े हुए आचार्यश्री का आध्यात्म की ओर रुझान बढ़ता गया। Acharya Shri Vidyasagar Maharaj का बाल्यकाल का नाम विद्याधर था। कर्नाटक, बेलगांव के ग्राम सदलगा में 10 अक्टूबर 1946 को जन्मे आचार्यश्री ने कन्नड़ के माध्यम से हाई स्कूल तक शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद वे वैराग्य की दिशा में आगे बढ़े और 30 जून 1968 को मुनि दीक्षा ली। आचार्य का पद उन्हें 22 नवंबर 1972 को मिला।
शोध के लिए छात्र पढ़ते हैं मूक माटी
जैन दर्शन पर कई पुस्तकें लिखने के साथ ही वे कविता लेखन भी करते रहे। उन्होंने माटी को अपने महाकाव्य का विषय बनाया और मूक माटी नाम से एक खंडकाव्य की रचना की। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित उनकी यह पुस्तक बहुत लोकप्रिय हुई। विचारकों ने इसे एक दार्शनिक संत की आत्मा का संगीत कहा। इससे कई छात्र अपने शोध के लिए बतौर संदर्भ इसे उपयोग में ला रहे हैं। उनकी अन्य रचनाएं नर्मदा का नरम कंकर, डूबो मत लगाओ डुबकी आदि हैं।
-Acharya Shri Vidyasagar Maharaj संस्कृत सहित हिन्दी, मराठी और कन्नड़ सहित अन्य भाषाओं का भी ज्ञान रखते हैं।
-गांव के स्कूल में मातृभाषा कन्नड़ में उन्होंने पढ़ाई शुरू की और कक्षा नवमी तक की शिक्षा प्राप्त की।
-गणित के सूत्र हो या भूगोल के नक्शे विद्यासागर पलभर में सबकुछ याद कर लिया करते थे।
-बचपन में विद्यासागर शतरंज और गिल्ली-डंडा खेलना पसंद करते थे। इसके साथ ही उन्हें शिक्षाप्रद फिल्में देखना व मंदिर जाना भी बेहद पसंद था।
-विद्यासागर 20 वर्ष की उम्र में आचार्य देशभूषण महाराज से मिलने जयपुर पहुंचे थे।
– 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने साधारण से दिखने वाले विद्यासागर को संत होने की दीक्षा दी।
– सैकड़ों शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।
-उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परिषद जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं।
2001 के आँकड़ों के अनुसार उनके लगभग 21% दिगम्बर साधु आचार्य विद्यासागर के आज्ञा से चर्या करते हैं

Inspiring Quotes:

  • जिन्हें सुंदर वार्तालाप करना नहीं आता, वही सबसे अधिक बोलते हैं
  • दूसरों के हित के लिए अपने सुख का त्याग करना ही सच्ची सेवा है
  • जो नमता है, वह परमात्मा को जमता है
  • सम्यकत्व से रिक्त व्यक्ति चलता-फिरता शव है
  • चार पर विजय प्राप्त करो- १. इंद्रियों पर २. मन पर ३. वाणी पर ४. शरीर पर
  • डरना और डराना दोनों पाप है
  • पहले मानव बनें, मोक्ष का द्वार स्वतः खुल जाएगा
  • सहिष्णुता कायरता का चिह्न नहीं है, वीरता का फल है
  • जिसने आत्मा को जान लिया, उसने लोक को पहचान लिया
चरणो मे वन्दन है प्रभुवर, अगर धूल चरणो की मिल जाये
आपका पथ पालन करू, तो क्या आश्चर्य अगर महावीर भी मिल जायेंवीतरागता का मार्ग बताते, सृष्टि का सत्य स्वरूप बताते
उस दृष्टि से विश्व को देखू, तो क्या आश्चर्य अगर संसार मिट जायेतुम चरणों मे लिपट जाऊं, ऐसा सौभाग्य कब आये
तुम आशीष मिल जाय, तो क्या आश्चर्य संयम प्रकट हो जायेतुम उंगली पकङ कर चलू, ऐसा सौभाग्य कब होगा
तुम अमृत वचन का पालन करू, तो क्या आश्चर्य सत्य प्रकट हो जाये

विश्व रहस्यों को जानने वाले, तुम आत्मा को जानने वाले
तुम मार्ग पर निकलू, तो क्या आश्चर्य शुद्धात्मा प्राप्त हो जाये