सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के १६ स्वप्न व उनका फल

आज से पंद्रह सौ वर्ष पूर्व सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने निम्नलिखित १६ स्वप्न देखे थे जिनका फल आचार्य भद्रबाहु ने बताया था।
पंद्रह सौ वर्ष पूर्व की गई जैनाचार्य भद्रबाहु की भविष्यवाणी आज अक्षरशः सत्य साबित हो रही है।
स्वप्न 1- सूर्य अस्त होते देखा।
*फल* : पंचम काल में अंग शास्त्र के धारक मुनि नहीं होंगे।
*स्वप्न 2- कल्पवृक्ष की टूटती हुई शाखा देखी।
*फल* : अब क्षत्रिय राजा जिनेश्वरी दीक्षा नहीं लेंगे।
*स्वप्न 3-समुद्र को सीमा का उल्लंघन करते देखा।
*फल* : राजा लोग अन्यायी होंगे।
*स्वप्न 4-१२ फणों वाला सर्प देखा।
*फल* : बारह वर्षों का भयंकर अकाल बार बार पड़ेगा।
*स्वप्न 5-देव विमान वापस लौटते देखा।
*फल* : पंचम काल में स्वर्ग के देव नहीं आयेंगे।
*स्वप्न 6-ऊँट पर बैठा राजकुमार देखा।
*फल* : राजा और मंत्रीगण दयारहित होंगे।
*स्वप्न 7-दो काले हाथीयों को लडते देखा।
*फल* :समय पर पानी नहीं बरसेगा।
*स्वप्न 8- दो बछड़ों को रथ खींचते देखा।
*फल* : पंचमकाल में मुनिधर्म का निर्वाह युवावस्था में ही हो सकेगा।
*स्वप्न 9-नग्न स्त्रियों को नाचते देखा।
*फल* : लोग अरिहंत देव को छोड़कर कुदेवों को पूजेंगे।
*स्वप्न 10-सोने के पात्र में कुत्ते को खीर खाते देखा।
*फल* : उच्च कुल की लक्ष्मी नीच कुल में चली जायेगी।
*स्वप्न 11-जुगनू को चमकते देखा।
*फल* : जैन धर्म की प्रभावना कम हो जाएगी।
*स्वप्न 12-सूखे हुए सरोवर में दक्षिण दिशा की तरफ थोडा सा जल देखा।
*फल* : जिन स्थानों पर पंचकल्याणक हुए, उन स्थानों में धर्म की हानि होगी, और जैन धर्म दक्षिण की तरफ होगा।
*स्वप्न 13-धूल में खिला हुआ कमल देखा।
*फल* : ब्राह्मण और क्षत्रिय जैन धर्म से रहित होंगे, वैश्य लोग जैन धर्म पालेंगे और धनवान होंगे।
*स्वप्न 14- छिद्र सहित चन्द्रमा देखा।
*फल* :जिन शासन में अनेक भेद (फूट) हो जायेंगे।
*स्वप्न 15-हाथी पर बन्दर बैठा देखा|
*फल* : नीच लोग राज्य करेंगे और क्षत्रिय व ब्राह्मण लोग उनकी सेवा करेंगे।
*स्वप्न 16- धूल में रत्नों का ढेर देखा।
*फल* :मुनियों में आपसी फूट होगी, वे हिलमिल के नहीं रहेंगे।
इसलिय संध्या होने से पूर्व अर्थात जब तक इन्द्रियाँ स्वस्थ हैं, बीमारियाँ नहीं आयी हैं, शरीर क्षीणता को प्राप्त नहीं हुआ है, तब तक इस अचल, ध्रुव निज आत्मतत्त्व का सानिध्य प्राप्त कर लें ।धर्मध्यान अर्थात् सब तरफ से कर्तृत्व का उपयोग हटा कर अपने अकर्तास्वभाव ज्ञान स्वभाव का निर्णय कर सम्यक्त्व प्राप्त कर लेना ही श्रेष्ठ है।
जय जिनेन्द्र