भगवान महावीर का जीवन दर्शन विश्व शांति की अमर देन

अनादिकाल से विश्व की परम्परा विद्यमान है। प्रवाहमान जगम क्रम में जैन शासन भी अपने में अनादि है। अनंत अनंत तीर्थंकरों की अपेक्षा से यह जैन शासन अनादि है। प्रत्येक तीर्थंकर की अपेक्षा से इसका तत्वर्ती प्रारंभ माना जा सकता है। जैन शासन का दीप सदा से प्रकाशमान है। इसकी लौ जब टिमटिमाने लगती है, तब तीर्थंकर परमात्मा अपने केवल ज्ञान और केवल दर्शन के अनंत वैभव द्वारा इस दीप के प्रज्जवलन की स्नेह शक्ति का प्रक्षेप करके इसे प्रशिक्षण देता है। अपनी गति एवं स्थिति को केवल अनुमानित ही नहीं, पर व्यावहारिक एवं निश्चयात्मक स्वरूप दर्शन कराना भी इसका मुख्य लक्षण रहा है। इसी कारण से अनेकश: प्रबुद्ध जनों के लिए यह शासन अत्यंत उपकारक सिद्ध हुआ है। इस शासन में परम तीर्थ पति श्रमण भगवान महावीर देव ने साढ़े बारह वर्ष तक कठोरतम तप साधना करके प्रसुप्त आत्म शक्ति को प्रकट किया। वे भय भैरव में भी भय मुक्त स्थिति में रहे। अंत में उन्होंने राग और विराग का भेद स्पष्ट करते हुए वीतराग स्वरूप को प्राप्त किया, तपश्वरण से उन्होंने अपने जीवन को तजोमय—ज्योतिर्मय बनाया और ध्यान में लीन रहकर के उन्होंने अपने अध्ययसाय को अवधारणा रूप से स्वाधीन किया। इसके अलावा उन्होंने इस लोक में भव्य जीव को अलौकिक पथ का दर्शन भी कराया। भव्य के लिए भव्य भावना को जगाने का निर्मल संदेश देने वाली तीर्थंकर श्री महावीर प्रभु का जीवन आत्म वैभव से परिपूर्ण तब हुआ जब उन्होंने देहिकम प्रतिकूलताओं को अपने जीवन अनुकूल बनाने का उपक्रम रखा। अपनी आत्मिक महासत्ता को संप्राप्त करने में उन्होंने सफलता प्राप्त की एवं र्पूिणमा के चंद्र की भांति उसे प्रद्योतित किया । कृष्णपक्ष में क्षीण दशा को प्राप्त चंद्र क्षीण स्थिति में क्षेत्र की अपेक्षा अपना अस्तित्व सो देता है। पर वही चंद्र शुक्लपक्ष में संपूर्ण कलाओं से मुखर उठता है। ठीक वैसी अंधकार से अनंत प्रकाश के पाने के लिए पुरुष की तुरंत ऊध्र्वस्थिति में अधिष्ठित हो जाती है। वैसे ही श्रमण महावीर का जीवन अनेक विध पहलुओं से देखने पर वीरूप से परिपूर्ण एवं आत्म सौन्दर्य के समन्वित भाव से संपन्न प्रतीत होता है।

महावीर अद्भुत क्रांतिकारी थे।

उनकी क्रांति सर्वतोमुखी थी अध्यामिक दर्शन, समाज व्यवस्था यहाँ तक की भाषा के क्षेत्र में भी उनकी देन बहुमूल्य है। वर्तमान समय में भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित अनेकांत अपरिग्रह एवं अहिंसा जैसे सिद्धांत को विश्व समस्या समाधान के लिये निश्चयी सर्वोदयी एवं साम्यवादी आदर्श सिद्धांत व्यक्ति समाज राष्ट्र एवं विश्व का नव निर्माण कर सकते हैं। यह सिद्धांत पूर्व दर्शी है। महावीर का कहना है कि प्रत्येक वस्तु विराट और अनंत धर्मात्मक है। वह एकांतवादियों के मस्तिष्क से दूषित हरदर्शी विचारों को दूर करके शुद्ध एवं सत्य विचार के मार्ग दर्शन कराने वाला अमोध सिद्धांतय है। अनेकांत दर्शन से वैचारिक को दूर करके शुद्ध एवं सत्य विचार के मार्ग दर्शन कराने वाला अमोघ सिद्धान्त है। अनेकान्त दर्शन से वैचारिक मतभेद सौर्हता में परिवर्तन शील होकर अनेक समस्याओं का समाधानद भी दे सकता है। वस्तु स्थिति के ठीक—ठीक प्रतिपादन से संसार की अनेक समस्याओं का निराकरण होने से खरास के रिश्ते मिठास में बदल सकते हैं। अहिंसा के प्रतिपादक नि:संदेह महावीर थे, जिन्होंने रागद्वेष को जीता था। जीवन पथ शक्ति का आगार बनाया। आज आधुनिक भरत में विश्व को भी निर्भय वीर चाहिए जो स्वाधीनता के संरक्षण के लिए अपने आपका उत्सर्ग कर सके। प्रभु महावीर एक मात्र अद्वितीय आत्म विजय के प्रतीक थे। उन्होंने उच्चस्वर से उद्घोषणा की थी—सब जीवों को अपने समान समझों और किसी को दु:ख न दो। आंतरिक भावना के दर्शन पुनीत भावना से होते है। भगवान महावीर ने संदेह की मुख्य विधा है।अहिंसा, अनेकान्त, स्याद्वाद, परिग्रह और विश् व बंधुत्व। भगवान का स्पष्ट कथन है। कि केवल एक पक्षीय दृष्टिकोण के द्वारा समूचे सत्य को कोई भी व्यक्त करके विश्व के शांति, प्रेम, सौहार्द की गंगौत्री, प्रवाह नहीं कर सकता, वर्तमान समय में भगवान महावीर के अहिंसा अनेकांत एवं अपरिग्रह जैसे सिद्धांत निश्चय ही सर्वोदयी संमार्ग दिखा सकते हैं।

२६१६ वीं साल सफल हो महावीर भगवान की।
जनजीवनमें ज्योति जलादी, जिसने आत्मोत्थान की।।
वीर तुम्हारा जीवन दर्शन देताहै आलोक जगत को।
वीर तुम्हारे संदेशों से, त्राण मिला है, मानवता को।।
जियो और जीने दो नारा, हिंसा का करता उन्मूलन।
सत्य तुम्हारा मूर्त रूप हो, मिथ्या का करता उन्मूलन।

भगवान महावीर के २६१६ में पावन जन्म कल्याणक दिवस पर सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय सिद्धांत को आत्मसात कर उनके प्रचार प्रसार करने विश् व में बढ़ते आतंकवाद, भ्रष्टाचार जैसी दूषित भावना को बदला जा सकता है। इसके लिए हमें प्रभु चरणों में सच्चा श्रद्धा नमन करते हुए संकल्प करे तभी होगा जन्म कल्याण मनाने को सच्ची सार्थकता।

लेखक—श्री अनोखीलाल जी कोठारी,
ठोकर आयड़ उदयपुर (राज.)