—गीत—
तीनों लोकों में हमारा बड़ा नाम है।
मैं हूँ बड़ा क्रोधी नाराजी मेरा काम है।
क्रोध यदि न करोगे तो कोई नहीं डरेगा।
झूठ को भी सच्चा साबित क्रोध ही तो करेगा।
जिसने मुझको पाला उससे सब परेशान हैं।। तीनो.।।
तर्ज—मेरे अंगने में ………………………………..
तेरे परमातम में क्षमा का निवास है।
जिसे भूल क्रोध में तू करता विश्वास है।।टेक.।।
जैसे ठण्डी शीत से, जंगल भी जल जाते हैं।
वैसे ही उत्तम क्षमा से, कर्मवन जल जाते हैं।
आ जा तू भी स्व में, पर में न तेरा वास है।। तेरे परमातम.।।१।।
क्षमा के प्रभाव से, अग्नी भी शीतल होती है।
क्रोध के प्रभाव से, बुद्धि भी भ्रष्ट होती है।।
पारस प्रभु को देखो क्षमा ही जिनका वास है।। तेरे परमातम.।।२।।
संसार में यदि क्रोध का विस्तार न होता।
तब तो सभी कषायों का उद्धार न होता।।
इस क्रोध से न जाने कितने घर बिगड़ गए।
इस क्रोध से ही देश और समाज ढह गए।।१।।
निंह क्रोध के बल पर हुआ है क्रोध का शमन।
उत्तम क्षमा ही क्रोध का कर सकती है प्रशमन।।
यदि संगठित समाज करना चाहते हो तुम।
धारो स्वयं क्षमा व सहनशील बनो तुम।।२।।
भारत के सपूतों ! यही अमोघ शस्त्र है।
हिंसा से अहिंसा का सूत्र ही सशक्त है।।
सबके प्रति समभाव का झरना जो झर पड़े।
तो ‘‘चंदनामती’’ जगत में वैर ना बढ़े।।३।।