उत्तम संयम धर्म

श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में संयम धर्म के विषय में कहा है संजमु जणि दुल्लहु तं पाविल्लहु जो छंडइ पुणु मूढमइ। सो भमइ भवावलि जर—मरणावलि किं पावेसइ पुणु सुगइ।। संजमु पंचदिय—दंडणेण, संजमु जि कसाय—विहंडणेण। संजमु दुद्धर—तव धारणेण, संजमु रस—चाय—वियारणेण।। संजमु उपवास—वजंभणेण, संजमु मण—पसरहं थंभणेण। संजमु गुरुकाय—किलेसणेण, संजमु परिगह—गह…

उत्तम सत्य धर्म

श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में सत्य धर्म के विषय में कहा है दय—धम्महु कारणु दोस—णवारणु इह—भवि पर—भवि सुक्खयरू। सच्चु जि वयणुल्लउ भुवणि अतुल्लउ बोलिज्जइ वीसासधरू।। सच्चु जि सव्वहं धम्महं पहाणु, सच्चु जि महियलि गरुउ विहाणु। सच्चु जि संसार—समुद्द—सेउ, सच्चु जि सव्वहं मण—सुक्ख—हेउ।। सच्चेण जि सोहइ मणुव—जम्मु, सच्चेण पवत्तउ…

उत्तम शौच धर्म

श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में शौच धर्म के विषय में कहा है सउच जि धम्मंगउ तं जि अभंगउ भिण्णंगउ उवओगमउ। जर—मरण—वणासणु तिजगपयासणु झाइज्जइ अह—णिसि जिधुउ।। धम्म सउच्चु होइ—मण सुद्धिएँ, धम्म सउच्चु वयण—धण—गिद्धिएँ। धम्म सउच्चु कसाय अहावें, धम्म सउच्चु ण लिप्पइ पावें।। धम्म सउच्चु लोहु वज्जंतउ, धम्म सउच्चु सुतव—पहि…

उत्तम आर्जव धर्म

श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में आर्जव धर्म के विषय में कहा है धम्महु वर—लक्खणु अज्जउ थिर—मणु दुरिय—वहंडणु सुह—जणणु। तं इत्थ जि किज्जइ तं पालिज्जइ, तं णि सुणिज्जइ खय—जणणु।। जारिसु णिजय—चित्ति चितिज्जइ, तारिसु अण्णहं पुजु भासिज्जइ। किज्जइ पुणु तारिसु सुह—संचणु, तं अज्जउ गुण मुणहु अवंचणु।। माया—सल्लु मणहु णिस्सारहु, अज्ज…

उत्तम मार्दव धर्म

श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में मार्दव धर्म के विषय में कहा है मद्दउ—भाव—मद्दणु माण—णिंकदणु दय—धम्महु मूल जि विमलु। सव्वहं—हययारउ गुण—गण—सारउ तिसहु वउ संजम सहलु।। मद्दउ माण—कसाय—बिहंडणु, मद्दउ पंचिंदिय—मण—दंडणु। मद्दउ धम्मे करुणा—बल्ली, पसरइ चित्त—महीह णवल्ली।। मद्दउ जिणवर—भत्ति पयासइ, मद्दउ कुमइ—पसरूणिण्णासइ। मद्दवेण बहुविणय पवट्टइ—मद्दवेण जणवइरू उहट्टइ।। मद्दवेण परिणाम—विसुद्धी, मद्दवेण विहु…

उत्तम क्षमा धर्म

श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में क्षमा धर्म के विषय में कहा है उत्तम—खम मद्दउ अज्जउ सच्चउ, पुणु सउच्च संजमु सुतउ। चाउ वि आिंकचणु भव—भय—वंचणु बंभचेरू धम्मु जि अखउ।। उत्तम—खम तिल्लोयहँ सारी, उत्तम—खम जम्मोदहितारी। उत्तम—खम रयण—त्तय—धारी, उत्तम—खाम दुग्गइ—दुह—हारी।। उत्तम—खम गुण—गण—सहयारी, उत्तम खम मुणिविद—पयारी। उत्तम—खम बुहयण—चन्तामणि, उत्तम—खम संपज्जइ थिर—मणि।। उत्तम—खम…

आचार्य कुन्दकुन्द

जैनाचार्यों का वनस्पति ज्ञान

प्राचीन काल से ही विभिन्न पुराणों, ग्रन्थों एवं साहित्यिक रचनाओं में वनस्पतियों का उल्लेख होता रहा है। इन वनस्पतियों का वर्णन औषधियों, सौन्दर्य प्रसाधन, कृषि, भवन, शृ्रंगार, वस्त्र, विधि— विधान, संस्कार, अनुष्ठान इत्यादि के रूप में किया जाता है। प्रकृति के अत्यन्त समीप होने से मनुष्य को वनस्पतियों के स्वभाव…

जैन महाभारत –Part2

श्री वसुदेव वसुदेव का देशाटन— राजा समुद्रविजय ने अपने आठों भाइयों का विवाह कर दिया था, मात्र वसुदेव अविवाहित थे। कामदेव के रूप से सुन्दर वसुदेव बालक्रीड़ा से युक्त हो शौर्यपुर नगरी में इच्छानुसार क्रीड़ा किया करते थे। तब कुमार वसुदेव को देखने की इच्छा से नगर की स्त्रियों की बहुत…

जैन महाभारत –Part1

(१) कौरव-पाण्डव कुरुवंश परम्परा— कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर में परम्परागत कुरुवंशियों का राज्य चला आ रहा था। उन्हीं में शान्तनु नाम के राजा हुए। उनकी ‘‘सबकी’’ नाम की रानी से पाराशर नाम का पुत्र हुआ। रत्नपुर नगर के ‘‘जन्हु’’ नामक विद्याधर राजा की ‘‘गंगा’’ नाम की कन्या थी। विद्याधर राजा ने पाराशर के साथ गंगा का…

भवनवासी एवं व्यंतरदेवों के निवासस्थान (तत्वार्थवार्तिक से)

इस रत्नप्रभा पृथ्वी के पंकबहुल भाग में असुरकुमार देवों के चौंसठ लाख भवन हैं। इस जम्बूद्वीप से तिरछे दक्षिण दिशा में असंख्यात द्वीप समुद्रों के बाद पंकबहुल भाग में चमर नामक असुरेन्द्र के चौंतीस लाख भवन हैं। इस असुरेन्द्र के चौंसठ हजार सामानिक, तेतीस त्रायस्त्रिंश, तीन सभा, सात प्रकार की…

जैन आयुर्वेद ग्रंथ : कल्याणकारकम्

आचार्य उग्रादित्य कृत कल्याणकारकम् KALYĀṆAKĀRAKAṀ तीर्थंकरों द्वारा उपदेशित द्वादशांग रूप शास्त्र के उत्तर भेद प्राणावाय पूर्व ही आयुर्वेद शास्त्रों का मूल स्रोत ग्रंथ है। इस ग्रंथ में विस्तार से अष्टांगायुर्वेद का वर्णन है। ८—९ वीं शताब्दी में जैनाचार्य उग्रादित्य ने कल्याणकारकम् नामक महान् आयुर्वेद ग्रंथ की रचना की थी। जो…

भक्तामर स्तोत्र

भक्तामर स्तोत्र (अर्थसहित – सचित्र ) भक्तामर- प्रणत- मौलिमणि – प्रभाणां– मुद्योतकम् – दलितपाप- तमोवितानम्। सम्यक्-प्रणम्य- जिनपाद- युगम्- युगादा- वालम्बनम्-भवजले- पतताम्-जनानाम्॥१॥  अर्थ : झुके हुए भक्त देवो के मुकुट जड़ित मणियों की प्रथा को प्रकाशित करने वाले, पाप रुपी अंधकार के समुह को नष्ट करने वाले, कर्मयुग के प्रारम्भ में संसार…